बीमा बेचना आसान नहीं है – लेकिन नामुमकिन भी नहीं।
हर दिन हम सैकड़ों लोगों से मिलते हैं, पॉलिसी समझाते हैं, उम्मीद करते हैं कि ग्राहक ‘हाँ’ कहेगा। लेकिन अक्सर जवाब होता है – "अभी नहीं", "सोचकर बताऊंगा", या "मेरे पास पैसे नहीं हैं"। ये जवाब हमें रोक सकते हैं, या हमें और मजबूत बना सकते हैं – यह इस पर निर्भर करता है कि हम इन 'आपत्तियों' (Objections) को कैसे देखते हैं।
असल में Objection का मतलब ‘ना’ नहीं होता – इसका मतलब होता है ‘अभी नहीं समझा’।
बहुत से नए बीमा एजेंट इन बातों को सुनकर घबरा जाते हैं, लेकिन अनुभवी सलाहकार जानते हैं कि ग्राहक की हर आपत्ति में एक मौका छिपा होता है – भरोसा बनाने का, समझाने का, और एक मजबूत रिश्ता जोड़ने का।
इस ब्लॉग में हम आसान भाषा में जानेंगे कि ग्राहक आपत्तियाँ क्यों उठाते हैं, उनकी मंशा क्या होती है, और हम कैसे शांत, समझदारी और व्यवहारिक तरीके से इनका समाधान कर सकते हैं – ताकि हर 'ना' को 'हाँ' में बदला जा सके।
चलिए शुरू करते हैं, बीमा बिक्री की इस अनसुनी लेकिन बेहद जरूरी कला को सीखना – Objection Handling।
बीमा में Objection क्या होती है?
सबसे पहले एक सीधी और साफ़ बात – Objection का मतलब होता है: “ग्राहक का किसी बात पर असहमति या शंका जताना।”
जब कोई ग्राहक बीमा पॉलिसी लेने से पहले कोई सवाल उठाता है, कोई कारण बताता है कि वो अभी फैसला नहीं ले सकता – तो यही Objection कहलाती है।
उदाहरण के तौर पर:
- “अभी मेरे पास पैसे नहीं हैं”
- “मुझे अपने परिवार से पूछना है”
- “मैं इस बारे में सोचकर बताऊंगा”
- “मुझे इसकी जरूरत नहीं लगती”
- “पिछली बार का अनुभव अच्छा नहीं था”
ये सब Objections हैं – यानी ग्राहक ने सीधा मना नहीं किया, लेकिन वो पूरी तरह 'हाँ' भी नहीं कह रहा। इसका मतलब है, ग्राहक के मन में कुछ न कुछ उलझन है – और जब तक वो उलझन दूर नहीं होगी, तब तक वो फैसला नहीं लेगा।
अब बात समझने की ये है कि हर Objection एक रुकावट जरूर होती है, लेकिन ये “ना” नहीं होती।
बल्कि ये संकेत होता है कि ग्राहक आपकी बात सुन रहा है, सोच रहा है – बस अभी उसे किसी चीज़ की कमी महसूस हो रही है।
ये कमी हो सकती है –
- जानकारी की
- भरोसे की
- आर्थिक स्थिति की
- या फिर समय की
इसीलिए बीमा सलाहकार के रूप में हमारा काम सिर्फ पॉलिसी बेचना नहीं होता, बल्कि ग्राहक के मन की बात समझना होता है। और जब हम उसकी Objection को ध्यान से सुनते हैं, शांति से जवाब देते हैं, और सही समाधान पेश करते हैं – तब ही वो हमारे ऊपर भरोसा करता है और पॉलिसी लेने का फैसला करता है।
इसलिए Objection कोई रुकावट नहीं, बल्कि आगे बढ़ने का मौका है।
ये वो पल होता है जहाँ ग्राहक कह रहा होता है –
"मुझे समझाओ, मुझे भरोसा दिलाओ, फिर मैं हाँ कहूँगा।"
और यही मौका होता है, जहाँ एक औसत एजेंट रुक जाता है… और एक सफल एजेंट आगे बढ़ता है।
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ग्राहक Objection क्यों उठाते हैं? – गहराई से समझिए (Why Objections in Insurance Sales)
जब कोई ग्राहक हमारी बातों को सुनकर भी बीमा लेने का निर्णय तुरंत नहीं लेता, और सवाल करता है या कोई वजह बताता है जिससे वो ‘ना’ कह देता है — तो हम इसे Objection कहते हैं। लेकिन असली सवाल है कि ऐसी आपत्तियाँ आती ही क्यों हैं?
- क्या ग्राहक बहाना बना रहा है?
- क्या वो हमें टाल रहा है?
- या क्या वो सचमुच किसी परेशानी में है?
असल में हर Objection के पीछे एक भावनात्मक कारण होता है — एक डर, एक संशय, या फिर कोई पुराना अनुभव। जब तक हम उस भाव को समझ नहीं पाते, तब तक हम Objection को ‘ना’ ही समझते रहते हैं। चलिए अब इन कारणों को गहराई से समझते हैं:
1. भरोसे की दीवार अभी बनी नहीं होती
आप सोचिए — एक अनजान व्यक्ति आपके घर आता है और कहता है कि आप उसे हर साल पैसे देना शुरू कर दें, ताकि 20–25 साल बाद आपको फायदा हो।
- क्या आप तुरंत भरोसा कर लेंगे?
- यही ग्राहक के मन में चलता है।
वो सोचता है — “ये एजेंट कौन है? क्या ये सच बोल रहा है? क्या मेरा पैसा सुरक्षित रहेगा?” , यह Objection का सबसे पहला और सबसे आम कारण होता है – भरोसे की कमी।
बीमा कोई साबुन या चाय नहीं है जो आज खरीदकर आज ही इस्तेमाल हो। बीमा एक भविष्य की सुरक्षा है, और ग्राहक तब तक फैसला नहीं लेता जब तक वो पूरी तरह निश्चिंत न हो जाए कि सामने वाला व्यक्ति और उसका सुझाव दोनों उस भरोसे के लायक हैं।
समाधान: शुरुआत से ही ईमानदारी, स्पष्टता और आत्मविश्वास से बात करें। ग्राहक को अनुभव करवाइए कि आप केवल एक एजेंट नहीं, बल्कि एक सलाहकार हैं जो उसकी और उसके परिवार की सुरक्षा के लिए खड़ा है।
2. जानकारी अधूरी होती है या गलतफहमी होती है
कई बार ग्राहक बीमा के बारे में अधूरी या गलत जानकारी लेकर बैठा होता है।
उसे लगता है:
- "बीमा तो मरने के बाद काम आता है"
- "पैसे तो डूब जाते हैं"
- "क्लेम नहीं मिलता"
- "ये सब बेकार की स्कीमें हैं"
ये बातें उसने किसी रिश्तेदार, पड़ोसी या पुराने अनुभव से सुनी होती हैं। और जब आप पॉलिसी समझाते हैं, तो उसकी पहले से बनी धारणा टकराने लगती है।
- ऐसे में वो Objection उठाता है — लेकिन असल में वो सिर्फ कन्फ्यूजन में होता है।
समाधान: ग्राहक की गलतफहमियों को दूर कीजिए। सरल भाषा में, उदाहरण देकर समझाइए कि बीमा कैसे काम करता है, और कौन सी योजना उसके लिए सही है। उसे यह महसूस कराइए कि आप सिर्फ पॉलिसी बेचने नहीं आए हैं, बल्कि उसकी ज़िंदगी को बेहतर बनाने का रास्ता सुझा रहे हैं।
3. "फिलहाल जरूरी नहीं है" वाली मानसिकता
कई लोग बीमा को ज़रूरी नहीं मानते — खासकर तब तक, जब तक ज़िंदगी में कोई हादसा न हो जाए।
वो सोचते हैं:
- “अभी तो सब ठीक है, बीमा की क्या जरूरत?”
- “मैं अभी जवान हूँ, मुझे कुछ नहीं होगा”
- “इतनी जल्दी क्या है?”
ये Objection नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी को टालने की प्रवृत्ति है।
समाधान: ग्राहक को यह समझाइए कि बीमा एक पहले से किया गया इंतज़ाम होता है — जो ज़रूरत आने पर काम आता है। आप ये भी कह सकते हैं,
“बीमा वो छाता है, जो बारिश आने से पहले ले लिया जाए तो ही फायदा देता है। बारिश आने के बाद तो कोई छाता नहीं देता।”
4. वित्तीय दबाव या प्राथमिकता की उलझन
यह भी एक बड़ा कारण है — कई लोग चाहते तो हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि वो फिलहाल यह खर्च नहीं उठा सकते।
EMI, बच्चों की फीस, राशन-पानी – इन सब के बीच बीमा उनकी प्राथमिकता में नहीं आता।
- ऐसी Objection भावनात्मक भी होती है और वास्तविक भी।
समाधान: जब आप ग्राहक की परिस्थिति को समझकर उसकी आमदनी और खर्च के हिसाब से योजना बताते हैं — जैसे कि कम प्रीमियम वाली सुरक्षा योजना, तो वो ज्यादा सहज महसूस करता है। यह भी कह सकते हैं,
“सर, 10-15 रुपये रोज़ में अगर आप अपने बच्चों की सुरक्षा पक्की कर सकें, तो क्या वो निवेश गलत होगा?”
5. बीते हुए बुरे अनुभव
बहुत से लोग पहले किसी एजेंट से धोखा खा चुके होते हैं।
उन्हें पॉलिसी कुछ और बताई गई, और निकली कुछ और। क्लेम नहीं मिला, दस्तावेज़ पूरे नहीं थे, एजेंट ने फोन उठाना बंद कर दिया... और अब वो किसी पर भरोसा नहीं करते।
- इसलिए अब वो हर नए एजेंट को उसी नज़र से देखते हैं – और Objection उठाते हैं।
समाधान: धैर्य रखें, उन्हें बोलने दीजिए। उनकी बात पूरी होने के बाद अपने काम करने के तरीके, पारदर्शिता और सेवा भावना को धीरे-धीरे उनके सामने रखिए। उनके पुराने दर्द को समझिए, और भरोसा दोबारा बनाइए।
Objection ग्राहक का मना करना नहीं होता — वो उसका “डर, भ्रम और अनुभव” होता है।
अगर आप एक सच्चे सलाहकार हैं, तो आपकी जिम्मेदारी है कि आप इन डर और भ्रम की परतें हटाएं — बिना गुस्से, बिना दबाव और बिना जल्दबाज़ी के।
जब आप ग्राहक की Objection को गहराई से समझते हैं, तो आप उसे सिर्फ बीमा नहीं बेचते — आप उसकी ज़िंदगी में भरोसा, सुरक्षा और एक समझदार सलाह का योगदान देते हैं।
एक अच्छा एजेंट पॉलिसी नहीं, समाधान बेचता है, और Objection वही उठाता है, जिसे अंदर से सुरक्षा की ज़रूरत महसूस हो रही होती है – बस वो इसे अभी समझ नहीं पाया है।
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बीमा बिक्री में 10 सबसे आम Objections और उनके समाधान (Insurance Objection Handling Script)
1. "अभी पैसे नहीं हैं"
समझें: ग्राहक के पास पैसे की तंगी हो सकती है या वो बीमा को प्राथमिकता नहीं दे रहा।
कैसे जवाब दें:
"मैं समझ सकता हूँ सर/मैडम, आजकल महंगाई बहुत है। लेकिन अगर कोई अनहोनी हो जाए, तब घर कैसे चलेगा? यही पॉलिसी आपकी फाइनेंशियल सिक्योरिटी बन सकती है। हम प्रीमियम को आपकी सुविधा के अनुसार मंथली, क्वार्टरली या हाफ-ईयरली में कर सकते हैं।"
2. "मैं सोचकर बताऊँगा"
समझें: यह एक टालने वाली बात है, अक्सर ग्राहक असमंजस में होता है।
कैसे जवाब दें:
"बिलकुल सर, सोच-विचार करना अच्छा है। क्या आप बता सकते हैं कि कौन सी बात सोचने में आ रही है? शायद मैं कुछ क्लियर कर सकूँ।"
3. "मुझे इसकी जरूरत नहीं है"
समझें: ग्राहक को बीमा का महत्व नहीं समझ आया।
कैसे जवाब दें:
"सर, आपने बिल्कुल सही कहा, हम तब तक जरूरत नहीं समझते जब तक कुछ अनहोनी ना हो जाए। लेकिन बीमा ऐसी चीज है जो मुसीबत से पहले ही काम आता है। अगर आप कुछ मिनट दें तो मैं आपको कुछ उदाहरण से समझा सकता हूँ।"
4. "मैंने पहले एक गलत पॉलिसी ली थी, अब भरोसा नहीं"
समझें: यह विश्वास की समस्या है।
कैसे जवाब दें:
"सर, आपके साथ जो हुआ वो दुखद है। लेकिन आज मैं जो पॉलिसी बता रहा हूँ, वो पूरी तरह से पारदर्शी है, और आप खुद भी इसका डॉक्यूमेंट पढ़ सकते हैं। मैं चाहता हूँ कि आप पूरा समझकर ही निर्णय लें।"
5. "बीमा तो कुछ मिलता ही नहीं, पैसा डूब जाता है"
समझें: ग्राहक को टर्म प्लान और मनीबैक प्लान में फर्क नहीं पता।
कैसे जवाब दें:
"आपका सवाल बिल्कुल जायज है। दरअसल बीमा कई प्रकार के होते हैं। कुछ प्लान ऐसे हैं जो सिर्फ सुरक्षा देते हैं (टर्म प्लान), और कुछ ऐसे हैं जो मैच्योरिटी पर पैसा भी देते हैं (एंडोमेंट, मनीबैक)। मैं आपको दोनों का फर्क दिखा देता हूँ ताकि आप सही चुनाव कर सकें।"
6. "मैंने किसी और से बीमा ले रखा है"
समझें: ग्राहक पहले से पॉलिसी ले चुका है, लेकिन शायद उसका कवरेज कम हो।
कैसे जवाब दें:
"बहुत अच्छा किया आपने सर। बीमा लेना समझदारी की निशानी है। क्या मैं जान सकता हूँ कि आपकी मौजूदा पॉलिसी कितना कवरेज देती है? मैं एक मुफ्त एनालिसिस करके आपको बताता हूँ कि उसमें कोई गैप तो नहीं है।"
7. "मुझे परिवार से पूछना है"
समझें: निर्णय लेने में अकेले नहीं हैं।
कैसे जवाब दें:
"बिलकुल सर, ये तो बहुत अच्छा है कि आप परिवार की राय लेते हैं। क्या मैं एक बार आप और आपकी पत्नी/परिवार से एक साथ बात कर लूँ? ताकि सभी के सवाल एक साथ क्लियर हो जाएं।"
8. "अभी मेरी प्राथमिकता कुछ और है"
समझें: शादी, घर, गाड़ी जैसे खर्च ज्यादा जरूरी लगते हैं।
कैसे जवाब दें:
"मैं आपकी स्थिति समझता हूँ सर। लेकिन अगर आपके न रहने पर ये सभी सपने अधूरे रह जाएं, तब क्या होगा? बीमा आपकी अनुपस्थिति में भी आपके परिवार को वो सपना पूरा करने की ताकत देता है।"
9. "इतना रिटर्न नहीं मिलेगा"
समझें: ग्राहक बीमा को निवेश मान रहा है।
कैसे जवाब दें:
"आप सही कह रहे हैं सर, अगर रिटर्न की ही बात हो तो म्यूचुअल फंड या शेयर बाजार बेहतर विकल्प हैं। लेकिन बीमा का मकसद सुरक्षा है। रिटर्न एक बोनस है। जब परिवार की सुरक्षा की बात हो, तब हम गारंटी चाहते हैं, रिस्क नहीं।"
10. "मैं बीमार हूँ, मुझे पॉलिसी नहीं मिलेगी"
समझें: ग्राहक को लगता है कि मेडिकल हालत में बीमा नहीं मिलेगा।
कैसे जवाब दें:
"कुछ हद तक आप सही हैं सर, लेकिन हर हालत में पॉलिसी नहीं मिलना जरूरी नहीं। कई कंपनियों के कुछ खास प्लान होते हैं जो मेडिकल हिस्ट्री को देखते हुए विकल्प देते हैं। मैं एक चेक करके बताता हूँ कि आपके लिए क्या संभव है।"
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Objection Handling के 3 गोल्डन रूल (How to Handle Objections in Sales)
1. सुनिए – बीच में मत टोकिए: ग्राहक जो कह रहा है उसे ध्यान से सुनिए। कई बार समाधान वहीं छिपा होता है।
2. सहानुभूति दिखाईए (Empathy): बोलिए – "मैं समझ सकता हूँ सर..."। इससे ग्राहक को लगेगा कि आप उसकी बात को समझते हैं।
3. समझाइए, बेचिए नहीं: ग्राहक को सिखाइए कि ये पॉलिसी उसके लिए क्यों जरूरी है। जब वो समझ जाएगा, तो खुद खरीदेगा।
एक सच्ची कहानी से सीख (Life Insurance Objection Handling)
राजेश जी, एक स्कूल टीचर थे। जब मैंने उन्हें बीमा की बात की, उन्होंने कहा – "मेरे पास पैसे नहीं हैं।"
मैंने पूछा – "अगर कल आपको कुछ हो जाए, तो आपके बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा?"
वो थोड़े शांत हो गए। मैंने उन्हें एक सस्ती मंथली प्रीमियम पॉलिसी दिखाई जो उनके बजट में थी और बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी कवर करती थी।
आज उनके पास 2 पॉलिसी हैं और वो हर साल रिफरेंस भी देते हैं।
सीख – objection बस एक कदम पीछे है, सही तरीका अपनाओ, तो ग्राहक खुद आगे आता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
बीमा की बिक्री में आपत्तियाँ आना बिल्कुल सामान्य है। फर्क सिर्फ इतना है – कोई सलाहकार घबरा जाता है, और कोई उन्हें अवसर बना लेता है।
हर objection एक संकेत है कि ग्राहक अभी पूरी तरह से समझा नहीं है। आपका काम सिर्फ पॉलिसी बेचना नहीं है – आपका असली काम है, लोगों को समझाना, भरोसा दिलाना, और उन्हें सुरक्षित बनाना।
अगर आप एक बीमा एजेंट हैं, तो अगली बार जब कोई "ना" कहे, तो डरिए मत। मुस्कुराइए और सोचिए – "अब असली बातचीत शुरू हुई है!"
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FAQs
जब ग्राहक बीमा पॉलिसी खरीदने से पहले किसी कारणवश संकोच करता है, सवाल पूछता है या मना करता है, तो उसे Objection कहा जाता है। यह ग्राहक का "ना" नहीं, बल्कि उसकी चिंता या असमंजस का संकेत होता है।
ग्राहक Objection इसलिए उठाते हैं क्योंकि उन्हें पूरी जानकारी नहीं होती, भरोसा नहीं होता, या फिर वे वित्तीय दबाव, पुराने अनुभव या टालने की मानसिकता में होते हैं।
नहीं, हर Objection का मतलब "ना" नहीं होता। अधिकतर Objection ग्राहक के भ्रम, डर या असमर्थता को दर्शाती है। सही तरीके से समझाकर जवाब देने पर वे "हाँ" में बदल सकते हैं।
एजेंट को शांत, धैर्यपूर्वक और समझदारी से ग्राहक की बात सुननी चाहिए। फिर उसे उसकी स्थिति के अनुसार समाधान देना चाहिए, जिससे उसका भरोसा बन सके।
जब एजेंट Objection को ग्राहक की वास्तविक ज़रूरत के रूप में देखता है और उसका समाधान ईमानदारी से करता है, तो Objection अवसर बन जाती है — और यही से पॉलिसी की बिक्री की शुरुआत होती है।